ईशा कोप्पिकर
Home Entertainment मेंटल हेल्थ पर बोलीं ईशा कोप्पिकर- “काफी समय तक मुझे नहीं पता था कि ‘मैं ठीक नहीं हूँ”

मेंटल हेल्थ पर बोलीं ईशा कोप्पिकर- “काफी समय तक मुझे नहीं पता था कि ‘मैं ठीक नहीं हूँ”

अभिनेत्री ईशा कोप्पिकर, जिन्हें क्या कूल हैं हम, कृष्णा कॉटेज, एक विवाह ऐसा भी, शबरी और डॉन जैसी फिल्मों में उनके यादगार किरदारों के लिए जाना जाता है, हाल ही में मानसिक स्वास्थ्य की प्रमुख पक्षधर बनकर उभरी हैं।

फिल्म इंडस्ट्री में अपने उतार-चढ़ाव भरे सफर से सबक लेते हुए, वह आत्म-मूल्य, इंटेंसिटी और भावनात्मक कल्याण को लेकर खुले संवाद को प्रोत्साहित कर रही हैं। एक ऐसी दुनिया में जहाँ चकाचौंध अक्सर गहरे निजी संघर्षों को छुपा देती है, उनकी ईमानदारी ताजगी भरी और बेहद ज़रूरी है।

ईशा कोप्पिकर

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ईशा ने बताया, “प्रसिद्धि दोधारी तलवार की तरह होती है। एक तरफ आपको सराहना और सफलता मिलती है, लेकिन दूसरी तरफ़, ऐसी उम्मीदों पर खरा उतरने का लगातार दबाव रहता है जो हमेशा वास्तविक नहीं होतीं।”

उन्होंने स्वीकार किया, “आपसे उम्मीद की जाती है कि आप मुस्कराते रहें, चाहे अंदर से टूटे हुए हों। लंबे समय तक मुझे यह नहीं पता था कि ‘मैं ठीक नहीं हूँ’ कहना भी एक विकल्प है। मुझे लगता है कि इंडस्ट्री में और लोगों को यह सुनने की ज़रूरत है कि कभी-कभी खुद को थका हुआ या हारा हुआ महसूस करना भी इंसानी बात है — और यह ज़रूरी नहीं कि आप चुप रहकर सब कुछ सहें।”

लगातार परफॉर्म करने, हर समय परफेक्ट दिखने और प्रासंगिक बने रहने का दबाव मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर डालता है — फिर भी बहुत कम लोग इस बारे में खुलकर बात करते हैं। ईशा का यह कदम इन पुराने और हानिकारक सोचों को चुनौती दे रहा है जो भावनात्मक कमज़ोरी को कमजोरी समझते हैं।

उनका यह सशक्त संदेश उन सभी लोगों के लिए है जो चुपचाप संघर्ष कर रहे हैं:
“आप जैसे हैं, वैसे ही पर्याप्त हैं। यह एक साधारण सच है जिसे हम में से कई लोग भूल जाते हैं, खासकर उस दुनिया में जहाँ हर चीज़ को फ़िल्टर और परफेक्शन के नाम पर सजाया-संवारा जाता है। असली ताक़त सब कुछ कंट्रोल में रखने में नहीं, बल्कि खुद के प्रति सच्चे, दयालु और ईमानदार रहने में है। कमजोरी नहीं, बल्कि vulnerability ही असली साहस है।”

ईशा कोप्पिकर के ये ईमानदार विचार मनोरंजन जगत में सफलता, मजबूती और आत्म-देखभाल के प्रति नज़रिए को नया रूप देने में मदद कर रही हैं। ऐसे समय में जब सोशल मीडिया अक्सर असुरक्षा और अवास्तविक उम्मीदों को बढ़ावा देता है, उनका संदेश दिल को छू जाता है।

वह न सिर्फ़ दूसरों को अपनी पहचान का एहसास दिला रही हैं, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य को एक अहम मुद्दा बनाकर पूरे विमर्श को बदलने में अहम भूमिका निभा रही हैं।

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