कृष्णा श्रॉफ
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कोई ड्रामा नहीं, बस अनुशासन: ‘छोरियाँ चली गाँव’ में कैसे दिल और चुनौतियाँ जीत रही हैं कृष्णा श्रॉफ

फिटनेस आइकन और एंटरप्रेन्योर कृष्णा श्रॉफ ‘छोरियाँ चली गाँव’ में शक्ति और शालीनता दोनों के साथ प्रतिस्पर्धा करने के अर्थ को नए सिरे से परिभाषित कर रही हैं। यह शो जहां शारीरिक कौशल, मानसिक रणनीति और भावनात्मक मजबूती की परीक्षा लेता है, वहीं कृष्णा अपनी खासियत से सबका ध्यान खींच रही हैं — गहरी दोस्ती और फोकस प्रतिस्पर्धी भावना के बीच संतुलन बनाने की अपनी दुर्लभ क्षमता के लिए उभर कर सामने आई हैं।

कृष्णा श्रॉफ ‘छोरियाँ चली गाँव’ में

एरिका पैकार्ड के साथ उनका दोस्ती का रिश्ता बेहद मजबूत है, जबकि सुमुखी सुरेश (जिन्होंने निजी कारणों से शो छोड़ दिया) के साथ उनकी आपसी समझ और सम्मान, उनके स्वाभाविक जुड़ाव को दर्शाते हैं। फिर भी, कृष्णा ने इन संबंधों को कभी अपने फ़ैसलों या जीत के इरादे पर हावी नहीं होने देतीं।

वह स्पष्ट सोच वाली हैं और पूरी तरह समर्पित, यह साबित करते हुए कि मजबूत रिश्ते और शानदार खेल दोनों एक साथ संभव हैं। वह जीत के लिए पूरी तरह तैयार हैं, लेकिन अपनी ईमानदारी से समझौता किए बिना।

कृष्णा श्रॉफ ‘छोरियाँ चली गाँव’ में

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अपनों से आगे बढ़कर कृष्णा ने हर किसी के साथ सार्थक रिश्ते बनाए हैं। अंजुम फ़कीह को वह “बड़ी बहन” कहती हैं और हाल ही में बाहर हुई रमीत संधू के साथ भी उनके पल बेहद सच्चे और दिल से जुड़े रहे। कृष्णा एक ऐसी गर्मजोशी और समावेशिता लाती हैं जिसे नज़रअंदाज़ करना मुश्किल है।

चाहे टीम टास्क हो या व्यक्तिगत चुनौती, कृष्णा दूसरों को आगे बढ़ने का मौका देती हैं, बिना किसी को अलग-थलग महसूस कराए या प्रतियोगिता को निजी बनाएं बिना। यही समावेशी और संतुलित दृष्टिकोण है, जो उन्हें प्रतिद्वंद्वियों के बीच भी शांत प्रशंसा दिलाई है।

वीडियो देखें – https://www.instagram.com/p/DN5j55bkpcU/

कृष्णा श्रॉफ ‘छोरियाँ चली गाँव’ में

तेज़-तर्रार माहौल के बावजूद, कृष्णा अपने व्यवहार में लगातार सम्मानजनक और ज़मीन से जुड़ी हुई रहती हैं — चाहे वह अनिता हसनंदानी के साथ हो, डबल धमाल सिस्टर्स सुरभि-समृद्धि की जोड़ी के साथ, या फिर डॉली जावेद और वाइल्डकार्ड एंट्री माएरा मिश्रा के साथ। एक ऐसा शो जिसमें अक्सर ड्रामा देखने को मिलती है, वहां कृष्णा स्पष्ट सोच और चरित्र की मिसाल बनकर उभरती हैं।

दोस्ती और निष्पक्ष प्रतिद्वंद्विता, दोनों के लिए जगह बनाए रखने की उनकी क्षमता दुर्लभ है और कृष्णा इसे बिना किसी का सम्मान घटाए बखूबी निभा रही हैं। भले ही वह अपनी शारीरिक ताकत के लिए पहचानी जाती हों, लेकिन ‘छोरियां चली गांव’ में उनकी असली चमक उनके दबाव में भी उनका शालीन व्यवहार ही सबका ध्यान खींच रहा है।

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