स्मृति ईरानी
Home Entertainment “क्लासरूम से कोर्टयार्ड तक स्मृति ईरानी ने बताया कि क्यों हर भारतीय बच्चे को एक क्रिएटर बनना चाहिए”

“क्लासरूम से कोर्टयार्ड तक स्मृति ईरानी ने बताया कि क्यों हर भारतीय बच्चे को एक क्रिएटर बनना चाहिए”

स्मृति ईरानी आज भारत की तेज़ी से बढ़ती क्रिएटिव ऊर्जा को केंद्र में ला रही हैं — जो अब सिर्फ़ शहरी दफ्तरों से नहीं, बल्कि गाँवों की पाठशालाओं, आँगनों और सामुदायिक केंद्रों से निकल रही है।

उन्होंने कहा, “भारत की रचनात्मक शक्ति तेज़ी से फैल रही है—न केवल महानगरों में, बल्कि गाँवों के आँगन, छोटे शहरों की गलियों और स्थानीय कम्यूनिटी सेंटर में भी। सस्ती तकनीक और गहरी सांस्कृतिक जड़ों के साथ, 10 करोड़ से ज़्यादा भारतीय—किसान, बुनकर और स्थानीय विशेषज्ञ—डिजिटल क्रिएटर बन चुके हैं।”

स्मृति ईरानी

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ईरानी एक ऐसे आंदोलन पर प्रकाश डाल रही हैं जहाँ आम नागरिक कहानीकार, शिक्षक और एंटरप्रेन्योर बन रहे हैं। बिहार के भोजपुरी क्रिएटर्स, जो शिक्षा में अंतर को भर रहे हैं, से लेकर राजस्थान की महिलाएँ, जो मोबाइल फिल्म निर्माण के ज़रिए मौखिक परंपराएँ फिर से जीवित कर रही हैं—यह ज़मीनी स्तर की लहर भारत के सीखने, बोलने और नेतृत्व करने के तरीके को बदल रही है।

उनके शब्दों में: “ये केवल कहानियाँ नहीं सुना रहे हैं — ये अपनी कहानियाँ सुना रहे हैं। यह भाषा, पहचान और स्थानीय गौरव में जड़ें जमाए एक जनांदोलन को शक्ति दे रहे हैं।”

ऐसे उदाहरणों की कमी नहीं — पटना के खान सर, जो सिर्फ़ चाक और कैमरे से लाखों लोगों को शिक्षित कर रहे हैं, बेंगलुरु की परिक्रमा फ़ाउंडेशन ने कहानी सुनाने को रोज़मर्रा के स्कूली शिक्षा में शामिल कर लिया है, और महाराष्ट्र की 17 वर्षीय श्रद्धा गरद, जो महामारी के दौरान एक डिजिटल कढ़ाई चैनल शुरू करने के बाद अब अपने गाँव की लड़कियों की मेंटर बन गई है।

“देश भर की कक्षाओं में, शिक्षक क्रिएटर बन रहे हैं, और छात्र एकल उद्यमी (सोलोप्रेन्योर)।”

स्मृति ईरानी ने देश के पहले सार्वजनिक स्ट्रीमिंग प्लेटफ़ॉर्म, वेव्स ओटीटी के लॉन्च को भी घरेलू क्रिएटर के लिए एक क्रांतिकारी पहल मानती हैं।

“वेव्स कन्टेन्ट की एक पैसिव पाइपलाइन नहीं है; यह एक लोकतांत्रिक पुल है। यह गाँवों और कस्बों से आने वाले क्रिएटर को संस्थागत मान्यता देता है और उन्हें अपनी कन्टेन्ट स्ट्रीम करने का समान अवसर प्रदान करता है।”

ईरानी एक ऐसे भविष्य की कल्पना करती हैं जहाँ भारत का हर बच्चा केवल कन्टेन्ट का उपभोक्ता न हो — बल्कि उसका एक शक्तिशाली निर्माता भी होगा।

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