
ईशा कोप्पिकर ने क्यों किया शाहरुख़ ख़ान का ज़िक्र, कहा- ‘जो कुछ नहीं करते, वही कमाल करते हैं’
बर्नआउट के लिए ईशा कोप्पिकर का अनमोल मंत्र: ‘आराम करो, खुद को रीसेट करो, भूलो, नया सीखो, खुद को अपडेट करो और पहले से भी मज़बूती से वापसी करो।’
ईशा कोप्पिकर महत्वाकांक्षा, अनुशासन और ट्रांसफॉर्मेशन से अनजान नहीं हैं। उन्होंने शोहरत, संतुष्टि और निराशाओं का सफर तय किया है। अब वे एक ऐसा संदेश साझा कर रही हैं जिसे हर युवा को सुनना चाहिए। उनका संदेश साफ़ है – सपना देखो, लेकिन आँखें खोलकर।

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ईशा कहती हैं, “सपने देखना बहुत ज़रूरी है। मैं हमेशा यही मानती और कहती हूँ। लेकिन बिना किसी योजना के जो सपने देखे जाते हैं, वो बस एक मृगतृष्णा की तरह हैं। वे आपको थका देते हैं। आपको भ्रमित कर देते हैं।”
ईशा महत्वाकांक्षा के खिलाफ नहीं हैं – बल्कि वे तो उसकी पक्षधर हैं। लेकिन वे यह ज़रूर कहती हैं कि असली ज़िंदगी तब शुरू होती है जब तालियों की गूंज थम जाती है।
“परीकथाएं, सपनों की दुनिया अच्छी लगती हैं। हम फ़िल्में अंत तक देखते हैं। लेकिन उसके बाद क्या होता है? असली ज़िंदगी वहीं से शुरू होती है। असलियत ‘द एंड’ के बाद होती है – फ़िल्मों के बाद, तालियों के बाद – जहां आपको धैर्य, योजना और मानसिक मज़बूती की ज़रूरत होती है।”
वह जानती हैं कि सफलता रातोंरात नहीं मिलती और चेतावनी देती हैं कि ग्लैमर अक्सर मेहनत को छुपा लेता है। “रातोंरात कुछ नहीं मिलता। रोम एक दिन में नहीं बना था। अस्वीकृति, अनुशासन। ढेर सारा समय, ढेर सारी कोशिशें, जुनून। आपको हर चीज़ की ज़रूरत होती है। लेकिन इसे चलाने के लिए आपको एक स्पष्ट योजना की ज़रूरत होती है।” और जब वह योजना विफल हो जाए? “योजना बदलो। लक्ष्य मत छोड़ो,” वह दृढ़ता से कहती हैं।
ईशा के लिए, बर्नआउट कमज़ोरी नहीं, बल्कि रुकने और खुद को फिर से जाँचने का संकेत है। “कुछ न करना भी ठीक है। शाहरुख खान ने कहा है, ‘जो कुछ नहीं करते, वे कमाल करते हैं’। आराम करो, खुद को रीसेट करो, पुराना भूलो, नया सीखो, खुद को अपडेट करो – और फिर लौटो, पहले से भी मज़बूत होकर।”
वे मानती हैं कि दबाव वास्तविक है – “समाज से, साथियों से, परिवार से, दोस्तों से, और सबसे ज़्यादा – खुद से।”
लेकिन वे इस बात पर ज़ोर देती हैं कि “मानसिक शांति और मज़बूती सबसे ऊपर है।”
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आख़िर में, ईशा का संदेश संतुलन पर आधारित है।
“हर सपने की एक क़ीमत होती है। अगर आप वो क़ीमत चुकाने को तैयार हो, तो पूरी तरह से उसमे लग जाओ। और अगर नहीं, तो कोई बात नहीं – कोई अपराधबोध मत रखो। सफलता की परिभाषा आपकी अपनी होनी चाहिए, किसी और की नहीं।”
वे याद दिलाती हैं कि जो कुछ भी आपके पास है, उसी से शुरुआत करो और अपनी गति पर भरोसा रखो: “आपकी टाइमिंग अद्भुत है – ये ईश्वर की टाइमिंग है।”
बचपन की एक मिसाल देते हुए, वह कहती हैं, “नींबू और चम्मच की दौड़ में, जो फिनिश लाइन तक पहुँचता है, उसके पास नींबू और चम्मच दोनों होने चाहिए।” संतुलन ही सब कुछ है। वह आगे कहती हैं कि अगर वह कभी ऐसी स्थिति में हों जहाँ उन्होंने सब कुछ पाया हो, लेकिन इस प्रक्रिया में सब कुछ खो दिया हो, तो यह उनके लिए सफलता नहीं है। “मैं जो कहती हूं, वो करती भी हूं। मैं हर दिन खुशी का अभ्यास करती हूँ। और सफलता बिना किसी चीज़ के खुश रहना है।”
उनके अंतिम शब्द? “जीवन स्थायी नहीं है। इसे ज़्यादा गंभीरता से न लें। इसका आनंद लें। हम ही दुनिया हैं। हम कुछ भी कर सकते हैं। भगवान ने हमें वो शक्ति दी है कि हम कुछ भी कर सकते हैं। आपसे प्यार करती हूं, और भगवान आपका भला करे।”
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